नपाध्यक्ष चुनाव: शाजापुर की राजनीति में उठापटक का दौर
शाजापुर में नगर पालिका चुनाव के बाद राजनीतिक दलों में अब भारी उठापटक का दौर चल रहा है। 29 वार्ड में से 17 वार्ड जीतकर भाजपा अपना अध्यक्ष बनाने का दावा कर रही है, लेकिन चार-चार दावेदार सामने आने के बाद अब भितरघात का खतरा बढ़ता जा रहा है, क्योंकि जिस पार्षद को अध्यक्ष का दावेदार नहीं बनाया गया, वो पक्ष में वोट करेगा, इसको लेकर पार्टी पदाधिकारी आशंकित हैं।
भारी ना पड़ जाए भितरघात
खबरीराम 24 डॉट कॉम @ SHAJAPUR
नगर पालिका अध्यक्ष के लिए चुनाव की तारीख का अभी ऐलान नहीं हुआ है। ऐसे में कांग्रेस की ओर से सेंधमारी की कोशिशों के चलते भाजपा ने अपने पार्षद और पार्षद प्रतिनिधियों को सैर पर भेज दिया है। सभी के मोबाइल चालू होकर नेटवर्क में भी हैं, ऐसे में वे फोन पर भी खेल करसकते हैं, यह भारतीय जनता पार्टी ने सोचा ही नहीं। बताया जा रहा है कि कुछ पार्र्षद घूम-फिरकर शाजापुर आ भी गए हैं। वहीं कांग्रेस की ओर से 9 पार्षद हैं। इनके अलावा दो निर्दलीय, एक आम आदमी पार्टी का पार्षद और चार भाजपा पार्षदों को अपने पक्ष में करने की चर्चा शहर में जोरों पर है। ऐसे में हो सकता है कि भाजपा में दो लोगों के बीच प्रतिष्ठा बन चुकी अध्यक्ष की कुर्सी पर कांग्रेस का प्रत्याशी बैठ जाए।
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डेढ़ करोड़ नकद लेकर चल रहे नेता
भाजपा में दावेदारों की बढ़ती संख्या देखकर कांग्रेस के पार्षद पति को उम्मीद बंध गई है। वे शहर में कहते फिर रहे हैं कि उनके पास डेढ़ करोड़ रुपए नकद हैं। इसके दम पर अध्यक्ष बनकर दिखाऊंगा। अब देखना यह है कि ‘राजयोग’ के चलते पार्षद का चुनाव हारते-हारते जीतने वाले उक्त नेता वास्तव में डेढ़ करोड़ रुपए लेकर चल रहे हैं या फिर हवा-हवाई बातें कर भाजपा में सेंधमारी का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि भाजपा के कुछ पार्षद पहाड़ी इलाकों में सैर का आनंद लेने के साथ लाभ-हानि का गणित भी बैठा रहे हैं। वहीं सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि भाजपा के पहली बार पार्षद बने नेता अनुभवहीनता के कारण समझ ही नहीं पा रहे हैं कि क्या करें और क्या ना करें। ऐसे में वे कुशल मागदर्शक की भी तलाश कर रहे हैं, जो उन्हें सही और गलत में अंतर बता सके।
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इस तरह हो सकता है भाजपा में भितरघात
संभावना है कि नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव 29 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के दो या तीन दिन बाद होंगे। अभी इसमें एक हफ्ते से ज्यादा समय लगेगा। इस समय अध्यक्ष के नाम को लेकर शहर में चर्चा का दौर चरम पर है। चार दावेदारों में से एक को अध्यक्ष का दावेदार बनाना तय हो गया है। ऐसे में इसकी क्या गारंटी है कि बाकी के तीन दावेदार अध्यक्ष के लिए भाजपा को ही वोट करंे। क्योंकि वे भाजपा को वोट करे या ना करें, उनकी पार्षदी तो सलामत रहेगी और उससे होने वाले तमाम फायदे भी उन्हें मिलते रहेंगे। ऐसे में एक वोट से अगर उनकी किस्मत बदल सकती है तो हो सकता है कि वो उलटफेर में प्रतिद्वंद्वी के साथ हो जाएं। क्योंकि चुनाव में खुल्ला वोट तो मान्य होता नहीं, ऐसे में किसे वोट दिया ये बात तो सामने आने से रही।
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भाजपा के साथ ही रहेंगे पार्षद
भाजपा के पदाधिकारी बता रहे हैं कि सभी 17 पार्षद भाजपा के अध्यक्ष दावेदार को ही वोट करेंगे। चाहे प्रतिद्वंद्वी कितने भी जतन कर लें, उनका बोर्ड नहीं बनेगा। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि अगर भाजपा को अपने पार्षदों पर इतना विश्वास था तो उन्हें शहर से दूर क्यों भेज दिया, ताकी वे किसी से मिल नहीं पाएं। साथ ही उन्हें बोर्ड बनने के बाद समितियों में सभापति और उपाध्यक्ष बनाने तक का वादा क्यों किया जा रहा है।