Taste of Malwa: तोलाराम की कचौरी.... यह नाम नहीं, शाजापुर का ब्रांड है...
शाजापुर के रहने वाले लोग तोलाराम की कचौरी से तो परिचित होंगे ही। खाकरे के पत्ते के दोने में दही की चटनी के साथ छोटी-छोटी कचौरियों का स्वाद हम लोगों को अच्छी तरह याद है। एक समय तोलाराम की कचौरी शाजापुर का ब्रांड नेम बन चुकी थी। लेकिन लंबे समय से यह स्वाद शहरियों को मिला नहीं है। इस लाजवाब स्वाद के लिए तरस रहे लोगों के लिए यह किसी खुशखबरी से कम नहीं है। शाजापुर मे एक बार फिर तोलाराम की कचौरी का स्वाद लोगों को चखने को मिल रहा है।
राधा टॉकीज चौराहे पर थी दुकान
खबरीराम 24 डॉट कॉम @ SHAJAPUR (MP)
राधा टॉकीज के सामने एक छोटी सी दुकान में तोलाराम प्रजापति की कचौरी की दुकान हुआ करती थी। वयोवृद्ध तोलाराम प्रजापति खुद ही कचौरियां बनाते नजर आते थे। लकड़ी की भट्टी पर चढ़ी कढ़ाही में मूंगफली के तेल से निकलती गरमागर्म कचौरियों को खाने के लिए यहां लाइन लगती थी। कई बार तो लोगों को कचौरी के लिए घंटो तक इंतजार भी करना पड़ता था। लोगों की इस स्वाद की आदत इस कदर लगी हुई थी के वे दो-दो घंटे तक प्रतीक्षा भी कर लेते थे। लेकिन कुछ साल पहले पुरानी और कच्ची दुकान होने के कारण तोलाराम प्रजापति को दुकान खाली पडऩा पड़ी। इसके बाद से शाजापुर के लोग इस पुराने स्वाद से वंचित हो गए। अब एक बार फिर उसी स्वाद के साथ यह जायकेदार कचौरी लोगों को मिलने लगी है।
तोलाराम प्रजापति के पुत्र संजय (संजू) प्रजापति अपने पिता की इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। लोगों की डिमांड पर उन्होंने नाथवाड़ा में राठौर समाज धर्मशाला के पास स्थित घर से कचौरियां बनाना शुरू किया है। हालांकि वे सीमित मात्रा में ही कचौरी बनाते हैं। कचौरी बनाने का समय भी शाम 4 से 6 बजे तक ही है। इस समय पर उनके यहां स्वाद के शौकीनों की भीड़ लगती है। संजू ने बताया कि कचौरी की स्टफिंग (मसाला) और दही की चटनी उनके पिता ही तैयार करते हैं। वे कचौरियों को फ्राय करते हैं। संजू के मुताबिक उनके पिता के हाथों बनी कचौरियां का स्वाद दूर-दूर तक के लोगों की जुबां पर बसा हुआ है। शहर के लोगों ने कई बार कहा कि जिस नाम से पहचान है, उसे जिंदा रखो और खुद कचौरियां बनाओं। इसके चलते कुछ समय से घर पर स्थित दुकान से ही कचौरियां बनाकर लोगों को खिला रहे हैं।
दही की चटनी से बढ़ता है स्वाद
तोलाराम के यहां कचौरी के साथ एक खास तरह की चटनी परोसी जाती है। इस चटनी में दही, इमली का पानी, हींग, हरा धनिया और कुछ मसाले होते हैं। हींग और दही होने के कारण चटनी का स्वाद बढ़ जाता है। साथ ही कचौरी के साथ इस चटनी को खाने से बदहजमी भी नहीं होती। शाजापुर के कई होटल संचालकों ने इस तरह की चटनी और कचौरी बनाने के प्रयास किए, लेकिन वे तोलाराम की कचौैरी जैसा स्वाद नहीं बना पाए।
नमकीन भी लाजवाब
ऐसा नहीं है कि तोलाराम प्रजापति का नाम सिर्फ कचौरी के लिए ही प्रसिद्ध था। उनके यहां बनने वाली लौंग सेंव, फीकी डंठल सेंव, पपड़ी, तीखी बूंदी, कलाकंद, खोपरा पाक और पोहा भी काफी प्रसिद्ध था। लोग कहते हैं कि तोलाराम की सेंव के जैसा कोई दूसरा बना ही नहीं सकता। उनकी सेंव की खासियत यह है कि इसे बैठे-बिठाए कोरा ही खाया जा सकता है और इससे मुंह भी नहीं छिलता है। आसपास के शहरों में रहने वाले शाजापुर के मूल निवासी लोग जब भी यहां आते हैं तो तोलाराम प्रजापति के घर जाकर सेंव और नमकीन लेकर जाते हैं।