मप्र के दो गांवों की तस्वीर: उज्जवल भविष्य के लिए बच्चों की जान का जोखिम
पिछले तीन दिन से जारी बारिश के कारण अब जनजीवन अस्त-व्यस्त होता नजर आ रहा है। नदी और नाले उफान पर हैं। मप्र के शाजापुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कई जगह पर पुल और पुलिया तक नहीं है। ऐसे में ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर जुगाड़ के सहारे नदी पार करना पड़ रही है।
रस्सी के सहारे उफनता नाला पारकर स्कूल जा रहे बच्चे
खबरीराम 24 डॉट कॉम @ SHAJAPUR (MP)
मप्र के शाजापुर जिेल के कई ग्रामीण क्षेत्र आजादी के बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। कुछ गांवों की ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जहां ग्रामीण आज भी अपनी जान जोखिम में डालकर नदी और नालों को पार करने को मजबूर हो रहे हैं। ग्रामीणों को समस्या ना ही जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहे हैं और ना ही जिले के अधिकारी।
शाजापुर की कालापीपल तहसील मुख्यालय से महज 9 किमी दूर देवराखेड़ी गांव के ग्रामीणों को बारिश के दिनों में रस्सी के सहारे जान जोखिम में डालकर नाले को पार करना पड़ रहा है। स्कूली बच्चे भी अपना भविष्य संवारने के लिए इस नाले को पार करके स्कूल जाते हैं। ग्राम पंचायत आलनिया के अंतर्गत आने वाले इस गांव देवराखेड़ी में लगभग 200 लोगों की आबादी है, लेकिन आज तक इस गांव को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सडक़ भी नहीं है और बिजली भी आठ दस घंटे ही मिल पाती है।
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कच्चा रास्ता तय करने की मजबूरी
आलनिया से देवराखेड़ी पहुंचने वाले रास्ते की दूरी 2.5 किलोमीटर है लेकिन बारिश के दिनों में यह दूरी तय करना किसी संघर्ष से कम नहीं। गांव के बच्चे और ग्रामीणों को कीचड़ भरे रास्तों से गुजरना पड़ता है और उसके बाद गांव के समीप ही पडऩे वाले नाले से जान जोखिम में डालकर जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ते हुए रस्सी के सहारे निकलना पड़ता है। ग्रामीण बच्चों और बुजुर्गों को रस्सी के सहारे पीठ पर सवार करके नाला पार कराते हैं । जब अधिक बारिश होती है तो कई दिनों तक बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। आवश्यक सामान की खरीदी के लिए ग्रामीणों को गांव से बाहर जाने के लिए भी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया गांव में जब भी कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उस मरीज को खटिया पर लेटाकर ले जाना पड़ता है। गर्भवती महिला को पहले ही गांव से बाहर भेज दिया जाता ताकि बारिश में परेशानी न हो।
लड़वाद में पिल्लर बने सहारा
लड़ावद के लोगों की समस्या भी बारिश में उजागर हुई। क्योंकि लड़ावद का नाला हर बारिश में जलमग्न रहता है और ग्रामीणों को गांव से बाहर जाने के लिए भी उसी रास्ते से सफर करना पड़ता है। ऐसे में अब ग्रामीण नाले पर बने पिल्लरों के सहारे रास्ता तय करने को मजबूर हैं। लड़ावद के ग्रामीणों ने बताया कि इस वर्ष ही नहीं बल्कि हर वर्ष की हमारी यही कहानी है। हालांकि अभी तक कोई जनहानि नहीं हुई है, लेकिन हमें हमारे बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है। क्योंकि वे भी अपने स्कूल जाने के लिए इसी रास्ते पर निर्भर है, जो बारिश मेंहम सभी के लिए मुसीबत बन जाता है। उन्होंने बताया कि करीब तीन साल पहले एक युवक रास्ता पार करते समय बह गया था। गनीमत रही कि उसकी जान बच गई और उसे बाहर निकाल लिया था। ग्रामीणों की माने तो उन्होंने कई बार जिला प्रशासन, प्रतिनिधियों को इससे अवगत भी कराया। वहीं इस नाले पर निर्माण कार्य के लिए भूमिपूजन भी हो चुका है, लेकिन आज तक काम शुरू नहीं हो सका है।
कब होगी सुनवाई
ग्रामीणों के मुताबिक वे कई बार इस समस्या से अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को अवगत करा चुके हैं, लेकिन आज तक उनकी समस्या को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। शायद अधिकारी किसी हादसे का इंतजार कर रहे हैं। उसके बाद शायद कभी हमारी सुनवाई हो जाए और हमें सुलभ आवागमन नसीब हो सके।
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